कोई भी नशा
छोड़ा जा सकता है आत्म बल से
पुष्कर सिंह दीगारी कालिका का धारचूला कभी पुष्कर सिंह दिल्ली फुटपाथों
में भंयकर स्मेकी हुआ करता था,इन्जेक्सनो
से नशा लेता था घर बार परिवार को भूल चूका था | घर से आजीविका के लिए दिल्ली चला आया था फेक्टरीयो में
होटलों में काम किया वर्षो अच्छा पैसा कमाया अच्छा कारीगर बन गया शादी की बच्चे
हुए | संगत के चलते स्मेक की लत
लग गयी | होटलों से निकाला गया
काम मिलता नही था | शादी
पार्टियों में कारीगरी किया करता था | कंगला लाइन में पड़ा रहता था घर परिवार से नाता टूट गया था | एक दिन किसी रिश्तेदार की नजर पड़ गयी |
उसने घर खबर कर दी | फिर क्या था दिल्ली आ गया पूरा परिवार पत्नी
बच्चों तथा माँ बाप को देख कर उस का दिल दहल उठा माँ बाप पत्नी ने घर चलने की
जिद्द की कैसे जाय घर वहा स्मेक तो मिलेगी नही कैसे जिन्दा रहूँगा | उसने घर वालों के सामने एक शर्त रखी पांच हजार
दो तब घर आऊंगा पांच हजार मिल गये सारे पैसो से स्मेक की पुडिया खरीद डाली वह घर
चला आया | निढाल पड़ा रहता था घर
में नाते रिश्तेदारों जानने वाले उमड़ पड़ते में बैचेन हो जाता था, सभी शक्ल सूरत देखकर हेरान थे | पूजा पाठ तथा बकरी की बलि होने लगी | स्मेक धीरे धीरे खत्म होने लगी आखिर वह दिन भी
आया जब आखिरी पुडिया भी समाप्त हो गयी थी | बैचेनी घबराहट से नीद नहीं आ रही थी पत्नी बच्चे सोये
थे | सुबह के चार बजे थे में
खिड़की से बाहर निकला रोड में वही समय
धारचूला दिल्ली का था | कुछ देर
में बस आयी बस में चड गया में |
दिल में ठान ली स्मेक छोड़ने की सरन संस्था के सहयोग तथा कठोर आत्म बल से
स्मेक छुट गयी एक्सर साएज करता हूँ संस्था के मेस में काम करता हूँ पार्टियों में
कारीगरी करता हूँ पैसा मिलते ही घर भेजता हूँ |
साथ में गोपाल मैथानी तथा रणजीत रावत तथा अन्य लड़के है | गोपाल
मैथानी को इंजेक्सन से नसा करने से H .I. V. पोजिटिव है | उसके आंसू दिल को देहला देते है | आँखों को रुला देती है | भटक
गया तथा घर जाऊ कैसे दिलासा के अलावा में कर भी क्या सकता था | प्रताप के खाने पिने में उनका सहयोग मुझे मिला,
फिर धर्मानन्द जोशी ग्राम भनोली चखुटीया
गिवाड 75 वर्षीय रामचंद्र
गोरेदाई नेपाली तथा कई को मरनासन पड़े लोगो को सरण दिलवाया मदर टेरेसा के सरण
संस्था में तथा में मदर टेरेसा का मानवीय संवेदनाओं में सेवा देखकर में दंग था ही
गुरुद्वाराओ की संस्कारों जन सेवा ने मुझे बहुत नसीहत दी |
दिल्ली दिल वालो की है दिल्ली में कोई भूखा नहीं मरता मंदिरों,गुरुद्वारों,मस्जिदों,चर्चो, बौद्ध मठे
चौबीसों घंटे शाकाहारी मांसाहारी भोजन, कम्बल कपडे पैसे बनते जाते है | भेरव मंदिर में मुफ्त में शराब भी बांटती है | तभी हजारो कंगले निठले विंदास होकर जीते है खाओ पियो
मस्त रहो | बहुत कुछ दिया है
मुझे दिल्ली ने जब जाता हूँ कुछ न कुछ मिलता है मुझे |
में और कंगला लाइन का अवलोकन की कृपा की जाय |
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