Wednesday 3 April 2013

कंगला (होम लेश)


कंगला (होम लेश)

जात धर्म क्षेत्रवाद पर लड़ने वालो से तथा राजनीति करने वालो से कई अच्छे है |
देहली में बिंदास जीवन बिताने वाले कंगले (होम लेश), कंगला लाइन में देश के हर कोने के हर मजहब के हर धर्म संस्कृति के तथा हर जात के मजहब के मानने वालो की समान रूप से भागीदारी है जो एक मिनी इण्डिया मिनी सार्क है, जिसमे नेपाल, भूटान, बंगला देश, तिब्बत, पाकिस्तानी, माल दीप, भूटान वासियों की समानरूप से भागीदारी निभाते है |
खाना मस्जिद मंदिर,गुरुद्वारों, चर्चो बौद्धमठो का हो क्या फर्क पड़ता है सब लाइन लगाकर खा लेते है |
खाना कपडा फल बाटने वाला सिख,मुसल्मान,हिन्दू इसाई,बौद्ध ही उसे क्या फर्क पड़ता है | भूखे को जो खाने को दे वही ईशवर अल्लहा परमेश्वर बौद्ध होता है कंगलो के लिए |
फुट फाथो रेन बसेरो में कोई नही पुछता वह हिन्दू है मुसल्मान सिक्ख,ईसाई बौद्ध है | राह से बटे हुए जीवन में असफल जिनको देहली वालो ने नाम दिया है कंगला |
कंगलो ने राह से भटकर अपने तथा अपने घर को ही तबाह किया है |
असली भटके वे लोग है जो जात धर्म तथा क्षेत्र के नाम पर झगड़ते है, राजीनीति करते है भ्रष्टाचार में लिप्त है, इससे तो देश ही समाप्त हो जायेगा फिर समूचा देश ही कंगला हो जायेगा |
दिल्ली दिल वालो की है चौबीसों घंटे मुफ्त खाना,कपडा बंटता है, मंदिरों गुरुद्वारों में चर्चो में, भेरव मंदिर में मुफ्त में शराब भी बढती है तभी हजारो कंगलो को निक्कमा बना दिया है दिल्ली वासियों ने कंगलो को |
कंगले बिन दिल्ली वासी तथा राजनेता अधूरे है दानवीरों की कमी नहीं दान लेने वाला भी चाहिये | राजनेताओं की भीड़ चाहिये उसकी भी पूर्ति करते है, कंगले शहजादे है दिल्ली तथा राजनेताओ की बिगडैल ओलाद है कंगले |
बेबसी मजबूरी तथा भूख आदमी को जात धर्म क्षेत्रवाद को भुला देती है |
आज देश में दलित वह है जिसके पास कुछ नहीं है | रिशवत तथा बेईमानी से कमाई है | कुछ लोगो को जातिगत धर्म की लड़ाई तथा राजनीति के लिए उकसाती है | जिसे भ्रष्टाचार से मुक्ति का मुहीम ही समाप्त कर सकती है | जिसके लिए समूचे राष्ट्र को अन्नाहजारे जिंदाबाद कहना होगा |

जसवंत सिंह जंगपांगी 

No comments:

Post a Comment